बस मेरे बोझ को , हर पल जैसे , उठाते चले गए ,
हर तकलीफ में भी , वो तो मुस्कुराते चले गए ,
की पूरी , हर वो ख्वाहिश , जिसकी की तमन्ना मैंने ,
बचपन से अब तक , राह नेक , वो मुझे दिखाते चले गए ,
जाता था जब स्कूल में , कैसे जाऊं वो सब भूल में ,
करना था कैसे सफर पूरा , मुझको वो सिखलाते चले गए ,
घेरा था जब बीमारियों ने , और दर्द में जब में करहाता था ,
याद करना खुदा को तू , वही तो थे , जो मुझे बतलाते चले गए ,
जब कभी घबराया में ,और जब कभी लड़खड़ाया में ,
छाया अँधेरा आँखों के आगे , या कुछ भी ना सुन पाया में ,
तुम ने ही तो बढ़ाई हिम्मत , जीना हे कैसे समझाते चले गए !
~ मोहम्मद फैसल नवाज़
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