ज़िन्दगी को जीना , तुमसे ही तो हे सीखा ,
भले ही रहा सफर , कभी मीठा , तो कभी तीखा ,
चले गए थे कुछ लोग , जब तन्हा छोड़ कर ,
बेवजह , कुछ ज़ख्म देकर , और दिल को तोड़ कर ,
गया था मर सा जैसे तब और लड़ रहा था , अपनी हर एक परेशानी से ,
आई थी जैसे रूह में जान दुबारा तब , तुम्हारी ही मेहरबानी से ,
वो तुम ही तो थे , जो ' दोस्त ' की तरह आए , तब एक फरिश्ता बन कर ,
वो तुम ही तो थे , जो खुशियाँ लाए , तब एक नायाब रिश्ता बन कर !
~ फैसल
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