वैसे अक्सर यह देखा जाता हे के विकलांगता को कदम कदम पर खुद की उपस्थिति
अथवा खुद की विकलांगता को प्रमाणित करने के लिए , भारतीय समाज में कड़ा
संघर्ष करना पढता हे ! में यहाँ यह ऐसा इस लिए लिख रहा हूँ क्यूंकि किसी की
शारीरिक असक्षमता ( विकलांगता ) को कभी भी किसी स्पष्ट मापदंड पर मापा नहीं
जा सकता , चाहे वो प्रतिशत में हो या किसी बीमारी के रूप में ,
हर विकलांगता या शारीरिक विकार के पीछे अपनी ही एक चुनौती और दर्द छिपा
होता है !
बात अगर बुज़ुर्गों की करें तो उनको उनकी ढलती उम्र ,
उनके बालों के रंग तथा उनकी त्वचा पे पढ़ती झुर्रियों से कुछ हद तक उनकी
पहचान करना आसान होती हे जो विकलांगता पे शायद लागू नहीं होती , कई बार
देखा गया हे के विकलांग व्यक्तयों के संधर्ब में लोगों की एक अलग ही धारणा ,
एक अलग ही दृष्टिकोण होता है , जिसमें विकलांग व्यक्तयों के साथ
अशोभनीय व्यवहार , तथा मानसिक वा शारीरिक उत्पीड़न वा भेदभाओ भी शामिल
है !
ऐसा कई बार चर्चा का विषय बना के शारीरिक तौर पर विकलांग
व्यक्तयों को कभी उनसे उनकी ही विकलांगता का प्रमाण माँगा जाता हे , कभी
मेट्रो ट्रेनों के लिए बने स्टेशनों की लिफ्ट्स ( जहाँ यह साफ़ साफ़ लिखा
होता है के " लिफ्ट केवल बीमार व्यक्तयों के लिए तथा विकलांग या बुज़ुर्गों
के लिए है ) को लेकर सक्षम व्यक्तयों द्वारा बेरुखी दिखाई जाती हे , तो
कभी सीट / या किसी और दिक्कत को लेकर , उनसे ना चल पाने / ना बोल पाने /
ना दिख पाने / ना सुन पाने का प्रमाण माँगा जाता हे !
दरअसल
यह कुछ ऐसे अनछुए पहलूँ हैं , जिससे सक्षम व्यक्तयों का एक बोहत बड़ा तबका, आज भी अनजान
हैं , और जाने अनजाने में , कुछ ऐसी गलती कर जाते हैं , जो कहीं ना कहीं
एक कमज़ोर वर्ग को , ओर कमज़ोर बनाने में एहम भूमिका निभाती है !
हाँ
, हम सिर्फ यही आशा कर सकते हैं , के अच्छे दिन , एक दिन हर
व्यक्ति के लिए ज़रूर आयंगे , जब कोई भी कमज़ोर नहीं होगा , जहाँ कोई भी
भेदभाओ या बेरुखी नहीं होगी , जहाँ होंगे सब ही बस अपने , जहाँ होंगे पूरे सब के ही सपने !
कुछ लोगों
को , क्यों हे ऐसा लगता ,
के में भी हूँ , उनके ही जैसे चल सकता ,
जो में बोल
ना पाऊं , जो में सुन ना पाऊँ ,
हैं कुछ बंदिशें
, आखिर में कैसे समझाऊं ,
भले ही मुझको
यूं तो , दिखता नहीं है ,
भले ही संग मेरे , कोई फरिश्ता नहीं है ,
पर पा ही
लेता हूँ , में भी मंज़िल अपनी ,
थम हाथ उनका
, जिनसे मेरे कोई रिश्ता नहीं है ,
कमज़ोर हैं बाहें
, फिर भी मज़बूत पकड़ बनाऊं ,
खुद भी हूँ
हस्ता यूं तो , और दूजो को भी हसाउँ ,
हर कोई है वैसे , यहाँ
दुखों का मारा ,
है कोई अकेला
, तो कोई है बेसहारा ,
ख्वाहिश है
यही मेरी , है दुआ यही मेरी
,
ना रहे दुनिया , अब किसी की भी अँधेरी ...
ना रहे दुनिया , अब किसी की भी अँधेरी ...
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