Use Me to Translate Text !

Monday, 20 October 2014

My Pain is Mine !

वैसे अक्सर यह देखा जाता हे के विकलांगता को कदम कदम पर  खुद की उपस्थिति अथवा खुद की विकलांगता को प्रमाणित करने के लिए  , भारतीय समाज में कड़ा संघर्ष करना पढता हे ! में यहाँ यह ऐसा इस लिए लिख रहा हूँ क्यूंकि किसी की शारीरिक असक्षमता ( विकलांगता )  को कभी भी किसी  स्पष्ट    मापदंड  पर मापा  नहीं  जा  सकता , चाहे  वो  प्रतिशत  में  हो  या  किसी  बीमारी  के रूप  में    , हर विकलांगता या शारीरिक विकार के पीछे अपनी ही एक चुनौती और  दर्द  छिपा  होता है !

बात अगर बुज़ुर्गों की करें तो उनको उनकी ढलती उम्र , उनके बालों के रंग तथा उनकी त्वचा पे पढ़ती झुर्रियों से कुछ हद तक उनकी पहचान करना आसान होती हे जो विकलांगता पे शायद लागू नहीं होती , कई बार देखा गया हे के विकलांग व्यक्तयों के संधर्ब में लोगों की एक अलग ही धारणा , एक अलग ही दृष्टिकोण  होता  है  , जिसमें विकलांग व्यक्तयों  के साथ अशोभनीय व्यवहार , तथा मानसिक वा शारीरिक  उत्पीड़न वा  भेदभाओ  भी शामिल है  !

ऐसा कई बार चर्चा का विषय बना के शारीरिक  तौर पर  विकलांग व्यक्तयों को  कभी उनसे उनकी ही विकलांगता का प्रमाण माँगा जाता हे , कभी मेट्रो  ट्रेनों के लिए बने स्टेशनों  की लिफ्ट्स ( जहाँ यह साफ़ साफ़ लिखा होता है के " लिफ्ट केवल बीमार व्यक्तयों के लिए तथा विकलांग या बुज़ुर्गों के लिए है )  को लेकर सक्षम व्यक्तयों द्वारा बेरुखी दिखाई जाती हे , तो कभी  सीट  / या किसी और दिक्कत को लेकर  ,  उनसे ना चल पाने / ना बोल पाने / ना  दिख पाने / ना सुन पाने का प्रमाण माँगा जाता हे !  


दरअसल  यह कुछ  ऐसे  अनछुए  पहलूँ  हैं ,  जिससे सक्षम व्यक्तयों का एक बोहत बड़ा तबका,  आज भी अनजान हैं  , और जाने अनजाने में ,   कुछ ऐसी गलती कर जाते हैं , जो कहीं ना कहीं एक कमज़ोर वर्ग को , ओर कमज़ोर बनाने में एहम भूमिका निभाती है !

हाँ  , हम    सिर्फ  यही  आशा  कर सकते  हैं  ,  के अच्छे  दिन ,   एक दिन  हर  व्यक्ति के लिए ज़रूर आयंगे , जब  कोई भी कमज़ोर नहीं होगा , जहाँ कोई भी भेदभाओ या  बेरुखी  नहीं होगी  , जहाँ होंगे  सब ही बस अपने , जहाँ   होंगे  पूरे  सब के ही सपने  ! 

कुछ   लोगों  को  , क्यों   हे   ऐसा  लगता ,
के   में भी हूँ , उनके ही जैसे चल सकता , 
जो में बोल ना पाऊं , जो में सुन ना पाऊँ ,
हैं कुछ बंदिशें , आखिर में कैसे समझाऊं ,
भले ही मुझको यूं तो , दिखता नहीं है ,
भले ही संग  मेरे , कोई फरिश्ता नहीं है ,
पर पा ही लेता हूँ , में भी मंज़िल अपनी ,
थम हाथ उनका , जिनसे मेरे कोई रिश्ता नहीं है ,
कमज़ोर  हैं बाहें  , फिर  भी मज़बूत पकड़ बनाऊं ,
खुद भी हूँ हस्ता यूं तो , और दूजो को भी हसाउँ ,  
हर कोई है  वैसे , यहाँ  दुखों का मारा ,
है कोई अकेला , तो कोई है  बेसहारा ,
ख्वाहिश है यही मेरी  , है दुआ  यही  मेरी , 
ना रहे  दुनिया , अब किसी की भी अँधेरी ...



No comments:

Post a Comment