माँ , एक ऐसा नाम जिसको कभी मरयम कहा गया , कभी ममता की मूरत , जो अपने हर
बच्चे से अपनी जान से भी ज़्यादा स्नेह करती है , उनके लिए कुछ भी करने को ,
कुछ भी सहने को हमेशा तैयार रहती है , उसका हर बच्चा खुश रहे , वो हमेशा
यही कोशिश करती है , उसके बच्चे को कोई भी तकलीफ हो तो उससे कई ज़्यादा
तकलीफ उसको होती है , हाँ तभी तो माँ को सब धार्मिक किताबों में , एक
अलग ही दर्जा दिया गया है , वो माँ ही तो है , जो अपने से ज़्यादा
अपने बच्चो के बारे में सोचती है , उनके अच्छे के बारे में सोचती है , उनकी
फ़िक्र करती है , अपनी हर दुआ में खुदा से बस उन्ही का ज़िक्र करती है !
पर
ऐसी माँ , जिसका बच्चा बेहद ख़ास है , जिसमें अपना एक एहसास है , जिसके लिए
दुनिया जैसे एक दम अंजानी सी रहती है , उस बच्चे का अपनी माँ /अपनी
वालिदा से लगाओ , उन तमाम बच्चो से बेहद अलग होता है , उसकी सोच बेहद अलग
होती है , क्यूंकि उसकी दुनिया बस उसकी माँ से ही शुरू होती है और माँ पे
ही खत्म , एक छोटी सी कोशिश इस कविता के द्वारा , के आखिर वो बच्चा अपनी
माँ से कितना प्यार करता है और उसको किस तरह का डर हर पल सताता है और
उसकी माँ उसके लिए , उसकी ज़िन्दगी के लिए , कितना एहम मुकाम रखती है !
हाँ माँ ! इसी दुनिया की तो मैंने मुराद की है ,
मेरी झोली जो तूने , खुशियों से आबाद की है ,
पर कभी कभी डरता हूँ में , और आहें भरता हूँ में ,
तू रहे पास हमेशा , बस यही दुआ करता हूँ में ,
जो कभी तू मुझसे , दूर चली जाएगी ,
क्या यह दुनिया , तब मुझे समझ पाएगी ,
जो में सोचना चाहूँ , वो में क्यों सोच नहीं पाता ,
करता हूँ कोशिश पूरी , पर मंज़िल तक पोहंच नहीं पाता ,
उस रब की है अज़ीम नेमत , तेरी तालीम और तेरी नसीहत ,
क़ुर्बान तेरे आगे , सारी दौलत और सारी वसीहत ,
बस तेरे आँचल के साय में ही , तू मुझे हमेशा सुलाना ,
करूँ कितनी भी शैतानी , पर ना तू मुझे भुलाना ,
तेरे पाक क़दमों में ही तो , जन्नत की एक बस्ती है मेरी ,
खुदा के बाद , बस तू ही तो है , तुझसे ही तो बस हस्ती है मेरी....
( ~ faisal )
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