माँ ! जब भी वो पल, में याद करता हूँ ,
खुदा से बस दुआ में यही,फरयाद करता हूँ ,
के जो बीती मुझ पर , ना बीते किसी पर भी ,
खुशियों से झोली ,कर कोशिश , सब की आबाद करता हूँ ,
तेरा मन भी बेचैन रहता है वैसे , फ़िक्र में यूं तो मेरी ,
ना जाने किस सोच में , में वक्त बर्बाद करता हूँ ,
करती रहती हैं इंतज़ार , तेरी आँखें , मेरा घर अाने का ,
तेरी हिम्मत और तेरे जज़्बे को , ज़िंदाबाद करता हूँ ,
पर तड़प जाता हूँ , घबरा जाता हूँ , उस भयानक दौर की आहट से ,
फिर छुप जाता हूँ आँचल में तेरे , हवाओं की सनसनाहट से ,
जो चले गए , कहीं दूर , मुझे छोड़ कर , खुदा के घर में ,
है आज भी उनका अक्स , मेरी हर एक नज़र में ,
पर तू ना होना उदास , बस रहना यूं ही मेरे पास ,
तुझे बनाया उस रब ने , बेहद ही कुछ खास ,
अब भी कुछ तकलीफों से , हाँ ! गुज़र तो रहा हूँ,
शैतानियों को कर बंद , पर में सुधर तो रहा हूँ ,
करता हूँ , वायदा तुझसे , के हर दौर से बेखौफ लड़ूंगा,
भुला के सारी पिछली यादें ,फिर से , में आगे बढूंगा ! ( ~ फैसल )
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