बीता बचपन , ना जाने कितनी ही परेशानी में...
कभी रोता , कभी हस्ता , तो कभी करता शैतानी में...
जो आई समझ थोड़ी , तो निकाले कदम बाहर ,
देखे दुनिया , आखिर क्यों इतनी , यह हैरानी में ,
होता यूं तो दर्द , जब भी होता मोसम सर्द ,
हैं जो भी यह यह सांसें, बस किसी की मेहरबानी में ,
सब कुछ हे दिखता धुंधला, अब हर शीशे में जैसे ,
पाऊं अक्स बस अपना , में अब बहते पानी में ,
कभी जब दिल घबराए , या अँधेरा सा दिख जाए ,
बस खुदा के आगे , झुकाऊं अपनी यह पेशानी में ,
ना जुनूँ है कम , और ना होसला कम है ,
कभी हूँ हकीकत , तो कभी हूँ एक कहानी में ......( ~ फैसल )
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