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Saturday 15 November 2014

Whole World Is Fair !

भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला , भारत में सालों से नवम्बर माह में दिल्ली के प्रगति मैदान में  लगाया जाने वाला , अकेला ऐसा व्यापार मेला   है , जो  विश्वभर  से / में , एक अलग ही  दृष्टिकोण से देखा ऒर सराहा  जाता है ! 

हालांकि , दिल्ली के प्रगति मैदान में दिन प्रतिदिन   विभिन तरह के मेलों का आयोजन ( जैसे विश्व पुस्तक मेला  ,  हस्तशिल्प  मेला , ऑटो मेला  आदि )  समय समय पर  होता रहता  है ,पर दिल्ली का   अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला , किसी एक ख़ास वर्ग को ध्यान  में ना रख कर , सब तरह के वर्गो को अपनी ओर आकर्षित करता है , चाहे भारत के  विभिन राज्यों   की सांस्कृतिक  झलकियाँ , हस्तशिल्प एवं  कलाकीर्तियाँ  हों  या विभिन तरह की प्रदर्शनियां या बच्चो , निशक्तजन/शारीरिक असक्षम  ( विकलांग ) , बुज़ुर्गों  , महिलाओं आदि के मनोरंजन के लिए आयोजित कार्यक्रम , सब को ही अपनी ऒर आकर्षित करने में ऒर एक अलग ही समा बांधने में एहम भूमिका निभाते हैं  , जिसको देखने के लिए हर  वर्ग  में  , ना सिर्फ  एक अलग ही ऊर्जा होती  है बल्कि   कुछ नया सीखने ओर जानने  का , एक अलग ही  जज़्बा भी  होता है !

यह अकेला  ऐसा मंच है , जहाँ से बोहत कुछ सीखा और बोहत कुछ  देखा जा सकता है , के आखिर भारत को  सांस्कृतिक  , धार्मिक ऒर  लोकतान्त्रिक दृष्टि से -  विश्व भर में सर्वप्रथम क्यों जाना ओर पहचाना  जाता है , जिससे प्रभावित होकर  विदेशी सैलानी भी , इसको देखने के लिए ना सिर्फ बेहद उत्साहित ऒर प्रफुल्लित   होते हैं बल्कि इसको  देखने ऒर इसमें  शामिल होने के लिए भी  , अपनी उपस्तिथि  भी  दर्ज करवाते  हैं !   (~ फैसल )

   
                                                                       


Saturday 25 October 2014

Special Abilities Child Have Special Bonding With Special Mother !


माँ , एक ऐसा नाम जिसको कभी मरयम कहा गया , कभी ममता की मूरत , जो अपने हर बच्चे से अपनी जान से भी ज़्यादा स्नेह करती है , उनके लिए कुछ  भी करने को , कुछ भी सहने को हमेशा तैयार रहती है , उसका हर बच्चा खुश रहे , वो हमेशा यही कोशिश करती है , उसके बच्चे को कोई भी तकलीफ हो तो उससे कई ज़्यादा तकलीफ उसको होती है , हाँ तभी  तो  माँ को सब धार्मिक  किताबों   में  , एक अलग ही दर्जा   दिया गया  है    , वो माँ ही तो है ,  जो अपने से ज़्यादा अपने बच्चो के बारे में सोचती है , उनके अच्छे के बारे में सोचती है , उनकी फ़िक्र करती है , अपनी हर दुआ में खुदा से बस उन्ही का ज़िक्र करती है ! 

पर ऐसी माँ , जिसका बच्चा बेहद ख़ास है , जिसमें अपना एक एहसास है , जिसके लिए दुनिया जैसे एक दम अंजानी सी रहती है , उस बच्चे का अपनी माँ /अपनी वालिदा  से लगाओ , उन तमाम बच्चो से बेहद अलग होता है , उसकी सोच बेहद अलग होती है , क्यूंकि उसकी दुनिया बस उसकी माँ से ही शुरू होती है और माँ पे ही खत्म , एक छोटी सी कोशिश इस कविता के द्वारा , के आखिर वो बच्चा अपनी माँ से कितना प्यार करता है और उसको किस  तरह का डर हर   पल सताता है और उसकी माँ उसके लिए , उसकी ज़िन्दगी के लिए , कितना एहम  मुकाम रखती है ! 




हाँ माँ ! इसी दुनिया की तो मैंने मुराद की है , 
मेरी झोली जो तूने , खुशियों से आबाद की है , 
पर कभी कभी डरता हूँ में , और आहें भरता हूँ में , 
तू रहे  पास हमेशा , बस यही दुआ करता हूँ में , 
जो कभी तू मुझसे ,  दूर चली जाएगी , 
क्या यह दुनिया , तब मुझे समझ पाएगी , 
जो में सोचना चाहूँ , वो में क्यों सोच नहीं पाता , 
करता हूँ कोशिश पूरी , पर मंज़िल तक पोहंच नहीं पाता , 
उस रब की है अज़ीम नेमत , तेरी तालीम और तेरी नसीहत ,
क़ुर्बान तेरे आगे , सारी दौलत और सारी वसीहत , 
बस तेरे आँचल के साय में ही , तू मुझे हमेशा सुलाना ,
करूँ कितनी भी शैतानी , पर ना तू मुझे भुलाना , 
तेरे पाक क़दमों में ही तो  , जन्नत की एक बस्ती है मेरी , 
खुदा के बाद , बस तू ही तो है , तुझसे ही तो बस  हस्ती है मेरी....
                                                                          ( ~ faisal )







Monday 20 October 2014

My Pain is Mine !

वैसे अक्सर यह देखा जाता हे के विकलांगता को कदम कदम पर  खुद की उपस्थिति अथवा खुद की विकलांगता को प्रमाणित करने के लिए  , भारतीय समाज में कड़ा संघर्ष करना पढता हे ! में यहाँ यह ऐसा इस लिए लिख रहा हूँ क्यूंकि किसी की शारीरिक असक्षमता ( विकलांगता )  को कभी भी किसी  स्पष्ट    मापदंड  पर मापा  नहीं  जा  सकता , चाहे  वो  प्रतिशत  में  हो  या  किसी  बीमारी  के रूप  में    , हर विकलांगता या शारीरिक विकार के पीछे अपनी ही एक चुनौती और  दर्द  छिपा  होता है !

बात अगर बुज़ुर्गों की करें तो उनको उनकी ढलती उम्र , उनके बालों के रंग तथा उनकी त्वचा पे पढ़ती झुर्रियों से कुछ हद तक उनकी पहचान करना आसान होती हे जो विकलांगता पे शायद लागू नहीं होती , कई बार देखा गया हे के विकलांग व्यक्तयों के संधर्ब में लोगों की एक अलग ही धारणा , एक अलग ही दृष्टिकोण  होता  है  , जिसमें विकलांग व्यक्तयों  के साथ अशोभनीय व्यवहार , तथा मानसिक वा शारीरिक  उत्पीड़न वा  भेदभाओ  भी शामिल है  !

ऐसा कई बार चर्चा का विषय बना के शारीरिक  तौर पर  विकलांग व्यक्तयों को  कभी उनसे उनकी ही विकलांगता का प्रमाण माँगा जाता हे , कभी मेट्रो  ट्रेनों के लिए बने स्टेशनों  की लिफ्ट्स ( जहाँ यह साफ़ साफ़ लिखा होता है के " लिफ्ट केवल बीमार व्यक्तयों के लिए तथा विकलांग या बुज़ुर्गों के लिए है )  को लेकर सक्षम व्यक्तयों द्वारा बेरुखी दिखाई जाती हे , तो कभी  सीट  / या किसी और दिक्कत को लेकर  ,  उनसे ना चल पाने / ना बोल पाने / ना  दिख पाने / ना सुन पाने का प्रमाण माँगा जाता हे !  


दरअसल  यह कुछ  ऐसे  अनछुए  पहलूँ  हैं ,  जिससे सक्षम व्यक्तयों का एक बोहत बड़ा तबका,  आज भी अनजान हैं  , और जाने अनजाने में ,   कुछ ऐसी गलती कर जाते हैं , जो कहीं ना कहीं एक कमज़ोर वर्ग को , ओर कमज़ोर बनाने में एहम भूमिका निभाती है !

हाँ  , हम    सिर्फ  यही  आशा  कर सकते  हैं  ,  के अच्छे  दिन ,   एक दिन  हर  व्यक्ति के लिए ज़रूर आयंगे , जब  कोई भी कमज़ोर नहीं होगा , जहाँ कोई भी भेदभाओ या  बेरुखी  नहीं होगी  , जहाँ होंगे  सब ही बस अपने , जहाँ   होंगे  पूरे  सब के ही सपने  ! 

कुछ   लोगों  को  , क्यों   हे   ऐसा  लगता ,
के   में भी हूँ , उनके ही जैसे चल सकता , 
जो में बोल ना पाऊं , जो में सुन ना पाऊँ ,
हैं कुछ बंदिशें , आखिर में कैसे समझाऊं ,
भले ही मुझको यूं तो , दिखता नहीं है ,
भले ही संग  मेरे , कोई फरिश्ता नहीं है ,
पर पा ही लेता हूँ , में भी मंज़िल अपनी ,
थम हाथ उनका , जिनसे मेरे कोई रिश्ता नहीं है ,
कमज़ोर  हैं बाहें  , फिर  भी मज़बूत पकड़ बनाऊं ,
खुद भी हूँ हस्ता यूं तो , और दूजो को भी हसाउँ ,  
हर कोई है  वैसे , यहाँ  दुखों का मारा ,
है कोई अकेला , तो कोई है  बेसहारा ,
ख्वाहिश है यही मेरी  , है दुआ  यही  मेरी , 
ना रहे  दुनिया , अब किसी की भी अँधेरी ...



Sunday 3 August 2014

Disability is a Kind of Friendly Relation and Nothing ! HAPPY FRIENDSHIP DAY 2014


ज़िन्दगी को जीना , तुमसे ही तो हे   सीखा ,
भले ही रहा सफर , कभी मीठा ,  तो कभी तीखा ,
चले गए थे  कुछ लोग , जब  तन्हा छोड़ कर ,
बेवजह ,  कुछ ज़ख्म  देकर , और  दिल  को तोड़ कर ,
गया था मर सा जैसे  तब और लड़  रहा  था  , अपनी  हर  एक परेशानी  से  ,
आई  थी  जैसे रूह  में  जान  दुबारा  तब , तुम्हारी  ही मेहरबानी  से ,  
वो तुम ही तो थे , जो ' दोस्त '  की तरह आए , तब एक  फरिश्ता  बन कर   ,
वो तुम ही तो थे , जो खुशियाँ लाए , तब एक नायाब रिश्ता बन कर !
                                                                                                            ~ फैसल                                 



Wednesday 9 July 2014

Transport Bite ( PUBLIC BUSES ) - IS PUBLIC TRANSPORT SAFE FOR US / ME ?









Note : Apologizing if said words in the whole speech  hurt anyone as notifying all points based on the earlier experiences   !

X : Loco Motor Disability ( Non wheelchair users ) , Y : Wheelchair Users , Z : Visually Impaired Passengers , T : Mute and Hearing Impairment Passengers

 




Sunday 15 June 2014

No One Can UnderStand Child , Better than Father : Happy Father's Day 2014 !




बस मेरे बोझ को , हर पल  जैसे ,  उठाते चले गए ,
हर तकलीफ में भी , वो तो मुस्कुराते चले गए ,
की पूरी , हर वो ख्वाहिश , जिसकी  की तमन्ना मैंने ,
बचपन से अब तक , राह नेक , वो मुझे दिखाते चले गए ,
जाता था जब स्कूल में , कैसे जाऊं वो सब भूल में ,
करना था  कैसे सफर पूरा , मुझको वो सिखलाते चले गए ,
घेरा था जब बीमारियों ने , और  दर्द में जब में  करहाता था ,
याद करना खुदा को तू , वही तो थे , जो मुझे बतलाते   चले गए ,
 जब कभी  घबराया में ,और  जब कभी लड़खड़ाया में ,
छाया अँधेरा आँखों के आगे , या कुछ भी ना सुन पाया में ,
तुम ने ही तो बढ़ाई हिम्मत , जीना हे कैसे समझाते चले गए !


~ मोहम्मद  फैसल नवाज़

Monday 3 March 2014

Just Move Positively with Good Persons !

Yes , There is No prediction in Life , what  happen next to Us , Sometimes things which unfavour for any one , might be there is a hidden favour in it  . Just Keep faith on God Always , and Move ahead positively with Good Persons !

Life is Always like ' A MYSTERY' , No One knows About  it , Better than ALLAH  !


Sapno mein ho Rehna , To Sab Kuch Nahin Hey ,

Zuba'n Se Kuch Bhi Kehna , To Sab Kuch Nahin Hey ,

Raho Khush or Sabko Rakho Khush Hamesha ,

Ashqo'n ka hi behna , To Sab Kuch Nahin Hey ,

Karo Wahi , Jo Bus , Dil Ko Lage Accha ,

Ghut Ghut ke , Dard Sehna , To Sab Kuch Nahin Hey ,

Aaa bhi Jaao Kabhi , Kisi Bimaari ki Giraft Mein ,

Or Chehra , Khile Naa , To Sab kuch Nahin Hey ,

Milenge Farishtey , Inhee Katreele Raasto'n Par ,

Jo Manzil Mile Naa , To Sab kuch Nahin hey ...
  

~ Faisal 


Tuesday 25 February 2014

Support Others , If You Can !

Yes ! There are many persons  , which  yet marginalized  in countries like India , does'nt matter , nature of their backwardness , many are just struggling because of their religions , many of them are affecting ,  because of their caste while a mass amount of population also , struggling for their Sustainable Identity  and Diversity  , just on the grounds of disability or Gender Issues most of the times  !  

An Small attempt with this poetry to fueling up  energy to wake up all  in view of that , Inside Every One , There is a  hidden  Hero       ( Yes ! SAB MEIN HEY HERO ) .... Just Do fight from your own  for your Rights and Support others  Also , if you Can !










Monday 20 January 2014

TO 'HEAR' IS EVERYONE'S RIGHT !




My Grandmother cross the age of 80 now  , and unable to hear the sound properly , as a  result she face problem to enjoy TV programmes ,  no doubt that is because of elderly  age of her  but what is the fault of those millions of  persons who born with Hearing Impairment or loss hearing because of some disease/accident  sometimes . There is nothing wrong , what the deaf peoples and disability groups  are demanding now a days from Government  ,  to enjoy a 26th Jan Republic Day 2014 with support of 'Sign language Interpreter'  , is their  constitutional Right , and cannot be confined only to few channels , it need to be delive to all the channels which manage and telecast  by Government of India !

Are they not deserve to enjoy as like others ?

Are they not have a right to watch all such  TV programmes which others audience  watch  ?

If Government cannot hear our grievance, so who will hear ?

Please Government of India Officials ! Don’t listen with ‘ deaf ears’ but listen  with kind  human heart , listen accordingly with the Provisions  of P.w.D Act 1995 , U.N.C.R.P.D , Human Rights Law , Constitutional Law etc , which you only drafted  and approved  !

Tuesday 7 January 2014

DISABILITY NEEDS ACCESS AND NOTHING !



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Views of Manish Gupta ( Wheelchair user ) in  context  to hurdles behind  Access and disability.
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Hi ,
My name is Manish Gupta. I am a physically disabled person,my b'day is on 10 dec,This letter speaks out my thoughts on the need for an immediate awareness in society. A number of questions rise in my head and most of them have to do with accessibility and the environment.

Even now there does not exist an disabled friendly environment.

Why
cannot I not go to a Nirulas or a Mc donalds or for that matter most of the restaurants? 
Why is it that every year on my birthday while others are out enjoying, I spend time at home alone, simply because are no ramps or lifts in most places I would want to go to.


I love to work and act. I love to watch movies and serials, especially
those ok  , to opportunity fails to make my dreams come true. I would be very grateful if you could help in some way or the other.

Waiting for a positive response.


Thanking you


Yours Faithfully


Manish Gupta